वास्तविक शिक्षा क्या है ? What is real Education
इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने का प्रत्न कर रहे हैं कि
हमारी वास्तविक शिक्षा कैसे होनी चाहिए | प्रत्येक देशकी शिक्षा-व्यवस्था उस देश के देशवासियोंके
आचार-विचार, रीति-रिवाज, संस्कृति एवं धार्मिक भावनाओंके अनुकूल होनी चाहिये |
हमारा देश अध्यात्मप्रधान देश रहा है | आध्यात्मिक शिक्षाके ही पुण्य-प्रतापसे हमारे देशको सम्पूर्ण विश्वमें गौरवका स्थान प्राप्त था और उसे ‘ऋषिभूमि’, ‘ज्ञानभूमि’ कहा जाता था | धर्म ही भारतीय जीवन का प्राण माना गया है | आज हमारे देशकी शिक्षा-पद्धतिमें इन्ही दो प्रधान तत्वों का अभाव है |
हमारी प्राचीन धार्मिक शिक्षा में सत्य, क्षमा, दया, प्रेम, स्नेह, करुणा, सेवा, संयम, शालीनता, त्याग, आदि के पाठ पढ़ाये जाते थे, जिससे मानव-चरित्रका निर्माण होता था | ये ही सदगुण आत्मा का धन और मनुष्यत्वकी सच्ची पूँजी माने गये हैं | अमृतत्वकी उपलब्धि होती है | पुरुषार्थ चतुष्टयकी उपलब्धिके अनुरूप उदीयमान सर्वशक्ति संपन्न व्यक्तियों का विकास ही भारतीय प्राचीन धर्मसमन्वित शिक्षा का उद्देश्य रहा है | भारतीय ज्ञानकी दृष्टि से शिक्षा वह पद्द्ति है, जो हमारी नैसर्गिक एवं आंतरिक शक्तियों और योग्यताओं को प्रकट करने तथा उनका अधिक-से-अधिक विकास करने में सहायक होती है | आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा संस्कृति के अर्थमें नूतन ज्ञान देने वाली या सृष्टि करने वाली न होकर अंतरात्मा में सोई हुई ज्ञानरश्मियों को प्रबुद्ध करती है और हमें इस योग्य बनाती है कि हम उन्हें देखें, जाने और अपनी आध्यात्मिक तथा उन्नति के लिए उनका उपयोग कर सकें | जिस शिक्षा प्रणाली के द्वारा मनुष्य भेदसे अभेदकी ओर, अनेकता से एकता की ओर, द्वेष, कलह, घृणा से प्रेम की ओर, मृत्यु से अमरत्वकी ओर तथा अशांतिसे शांति की ओर बढ़े, वही सर्वश्रेष्ठ अध्यात्मिक शिक्षा है | आज के अध्यात्मिक धरातल पर लाकर मनुष्य-मनुष्यमें प्रेम, सौहार्द एवं सौमनस्यकी सृष्टि के लिए आध्यात्मिक शिक्षा की नितांत आवश्यकता है, जिससे ‘सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः|’ की महार्षियोंकी तपःपूत वाणी से संसार में आध्यात्मिक जीवन जाग उठे |
हमारा देश अध्यात्मप्रधान देश रहा है | आध्यात्मिक शिक्षाके ही पुण्य-प्रतापसे हमारे देशको सम्पूर्ण विश्वमें गौरवका स्थान प्राप्त था और उसे ‘ऋषिभूमि’, ‘ज्ञानभूमि’ कहा जाता था | धर्म ही भारतीय जीवन का प्राण माना गया है | आज हमारे देशकी शिक्षा-पद्धतिमें इन्ही दो प्रधान तत्वों का अभाव है |
हमारी प्राचीन धार्मिक शिक्षा में सत्य, क्षमा, दया, प्रेम, स्नेह, करुणा, सेवा, संयम, शालीनता, त्याग, आदि के पाठ पढ़ाये जाते थे, जिससे मानव-चरित्रका निर्माण होता था | ये ही सदगुण आत्मा का धन और मनुष्यत्वकी सच्ची पूँजी माने गये हैं | अमृतत्वकी उपलब्धि होती है | पुरुषार्थ चतुष्टयकी उपलब्धिके अनुरूप उदीयमान सर्वशक्ति संपन्न व्यक्तियों का विकास ही भारतीय प्राचीन धर्मसमन्वित शिक्षा का उद्देश्य रहा है | भारतीय ज्ञानकी दृष्टि से शिक्षा वह पद्द्ति है, जो हमारी नैसर्गिक एवं आंतरिक शक्तियों और योग्यताओं को प्रकट करने तथा उनका अधिक-से-अधिक विकास करने में सहायक होती है | आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा संस्कृति के अर्थमें नूतन ज्ञान देने वाली या सृष्टि करने वाली न होकर अंतरात्मा में सोई हुई ज्ञानरश्मियों को प्रबुद्ध करती है और हमें इस योग्य बनाती है कि हम उन्हें देखें, जाने और अपनी आध्यात्मिक तथा उन्नति के लिए उनका उपयोग कर सकें | जिस शिक्षा प्रणाली के द्वारा मनुष्य भेदसे अभेदकी ओर, अनेकता से एकता की ओर, द्वेष, कलह, घृणा से प्रेम की ओर, मृत्यु से अमरत्वकी ओर तथा अशांतिसे शांति की ओर बढ़े, वही सर्वश्रेष्ठ अध्यात्मिक शिक्षा है | आज के अध्यात्मिक धरातल पर लाकर मनुष्य-मनुष्यमें प्रेम, सौहार्द एवं सौमनस्यकी सृष्टि के लिए आध्यात्मिक शिक्षा की नितांत आवश्यकता है, जिससे ‘सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः|’ की महार्षियोंकी तपःपूत वाणी से संसार में आध्यात्मिक जीवन जाग उठे |
Credit:- श्री हनुमनप्रसादजी
वास्तविक शिक्षा क्या है ? What is real Education
Reviewed by Ritik Mishra
on
Friday, November 15, 2019
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Thnx for sharing amazing reality of our culture
ReplyDeleteVery appreciable description
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