युवावस्था को वरदान बनाइए By Education Is Growth ,

"युवावस्था को वरदान बनाइए "

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कॉलेज मे हड़ताल होने पर जब भी किसी छात्र से यह पूछा जाता है कि तुम लोग हड़ताल क्यों कर रहे हो, तो एक ही उत्तर मिलता है पता नहीं, सब लड़के कक्षा का बहिष्कार कर रहे इसका अर्थ यह है कि दो चार छात्र नेता हल्ला-गुल्ला करके अन्य छात्रों को विवश कर दिया करते हैं कि हड़ताल जैसा वातावरण बना दिया जाए, इस प्रक्रिया को आप अन्य क्षेत्रों यह भी लागू समझ सकते हैं, इस प्रकार की घटनाओं को देखकर यह महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है, कि हमारा युवा वर्ग  बहकावे में बहुत जल्दी आ जाता है और किसी काम को करने से पहले  स्वविवेक द्वारा निर्णय  नहीं करता है, प्रायः प्रत्येक आंदोलन में हमारा युवा वर्ग सबसे आगे दिखाई देता है, एक प्रकार से यह ठीक भी है, यदि युवा वर्ग आगे नहीं आएगा, तो आगे चलने के लिए, कठिनाइयों एवं अवरोधों को पार करने के लिए क्या आसमान से लोग आएंगे? परन्तु हमारे युवकों को इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए कि वे क्या करने के लिए कटिबद्ध हुए हैं, जिस लड़ाई को लड़ने के लिए वे जा रहे हैं, वह किसकी लड़ाई है यानी उस लड़ाई या संघर्ष के साथ किस वर्ग के व्यक्तियों के हित जुड़े हुए हैं, हम देख सकते हैं कि बहुत कम आंदोलन ऐसे होते हैं जो युवा वर्ग के लाभालाभ से सम्बद्ध होते हैं और स्वार्थी नेता उनके कंधे पर बंदूक चलाते हैं, लाठी और गोली का सामना करते हैं हमारे युवक -युवतियाँ और लाभान्वित होते हैं तथाकथित नेतागण, हमारा निश्चित मत है कि जवानी में जोश अच्छा ही नहीं, आवश्यक भी है, परन्तु जोश में होश खो देना बुद्धिमत्ता नहीं है, हमारा युवा वर्ग स्वविवेक द्वारा यह निर्णय कर सके कि वह न्याययुक्त संघर्ष ही करेगा, तो उसकी शक्ति और उसके समय का दुरुपयोग न हो सकेगा, उनको उन व्यक्तियों के प्रति सावधान एवं सजग रहना है जो अप्रत्यक्ष रूप से स्वार्थ सिद्धि के लिए युवावर्ग को अपना मोहरा बनाते हैं. प्रत्येक बालक अतीत का रिक्थ और भविष्य का निर्माण लेकर जन्म लेता है,यह ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है, त्यों-त्यों भविष्य के निर्माण के प्रति उसका उत्तरदायित्व बढ़ता जाता है, स्वतंत्र इच्छा उसका अधिकार होता है और पुरुषार्थ का सम्यक प्रयोग उसका उत्तरदायित्व होता है, प्रत्येक युवक वस्तुतः भविष्य की आशा होता है और प्रत्येक युवती भविष्य की धात्री होती है. यही कारण है कि अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए प्रत्येक समाज तथा प्रत्येक राष्ट्र की आँखें युवा वर्ग की ओर देखती है. अपने उत्तरदायित्व के सम्यक् निर्वाह के लिए प्रत्येक युवक-युवती का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपनी शक्ति-सामर्थ्य को रचनात्मक कार्यों में लगाए, इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने परिवेश एवं उसके प्रति अपने सम्बन्ध को पहचाने और तदनुसार अपना कर्त्तव्य निर्धारित करे. अपेक्षित यह है कि उत्तरदायी नागरिक के रूप में युवा वर्ग अनैतिक कार्यों से स्वयं बचेगा और अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को उनके दुष्प्रभावों के प्रति सजग करके उक्त अवांछनीय  वृत्तियों को कुंठीत करने का प्रयास करेगा. हम सुदूर अतीत की बात नहीं कर रहे है. हम स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की आँखों देखी बात कह रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द बोस, भगत सिंह, खुदीराम बोस, अशफाक उल्ला, सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित आदि युवक-युवतियों ने स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय सहयोग प्रदान करके ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी थी.
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         म्राट प्रेमचंद ने ठीक ही लिखा है कि जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्म विश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है, जो जीवन को पवित्र उज्जवल और पूर्ण बना देता है। जवानी भटक जाएगी, तो समस्त सद्गुणों का तिरोधान हो जाएगा और समाज विप्लवग्रस्त होकर अधकार के अंक मे चला जाएगा. यह स्थिति राष्ट्र की युवा शक्ति का कलंक बन जाएगी हमें विश्वास है कि हमारा युवा वर्ग इस प्रकार के विनाशकारी मार्ग को कभी नहीं अपनाना चाहेगा. परन्तु इच्छा मात्र जीवन का निर्माण नहीं कर सकती है. जीवन का निर्माण करने के लिए स्वस्थ जीवन-पद्धति का निर्वाह अनिवार्य होता है. व्यक्ति समाज का जितना जो कुछ देता है, उसी अनुपात में उसका जीवन सुखी होता है सेवा मार्ग के पथिक ही व्यक्ति और समष्टि के भविष्य को सुरक्षित बनाते हैं,  और हमारे  सामने वे युवक-युवतियाँ आ जाती है, जो शिक्षित होने के उपरांत अपने भविष्य को अंधकारमय देखते हैं, निराशा एवं कुंठा उनके अहम् को आहत कर देती हैं तथा उनका आहत अहम् उन्हें तथाकथित अधरी गलियों की ओर प्रेरित कर देता है. इन छात्रों के साथ हमारी पूरी सहमति भी है और सहानुभूति भी है क्योंकि वर्तमान युग कठोर प्रतियोगिता का युग है। राजनीति प्रेरित आरक्षण की नीतियों ने एक वर्ग विशेष के युवावर्ग के भविष्य के सम्मुख अलंघनीय अर्गला खड़ी कर दी है, ऐसी स्थिति में युवक यह क्यों नहीं सोचते है कि जीवन की सफलता का मार्ग केवल शिक्षा-संस्थानों में होकर ही नहीं जाता है. वे यदि समझते हैं कि वे 90 प्रतिशत या अधिक अंक प्राप्त करने में समर्थ नहीं होंगे, तो वे उन महापुरुषों के जीवन से शिक्षा लें जिन्होंने पढ़ाई में मन न लगने के कारण विद्यालयों को नमस्कार कर दिया था और अन्याय क्षेत्रों में साधना द्वारा सफलता के शीर्ष पर पहुंचने की सामर्थ्य सम्पादित की थी. आरक्षण की वैसाखी पर चलने वाला वर्ग तो अपने को अपाहिज स्वीकार कर चुका है. आरक्षण की आक्सीजन कब तक उसे प्राणवत्ता प्रयत्न करती रहेगी? हम सिसरो के इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं कि 'जैसे बुढ़ापे में बद्धिमता होती है, वैसे ही जवानी में अल्हड़पन रहता है, परन्तु हम इतना अवश्य कहेंगे कि अल्हड़पन अपने लिए और अपनी इच्छा से ही किया जाना चाहिए, दूसरों के कहने पर 'चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम’ के नाम पर अल्डड़पन करना फूहड़पन है,  अल्हड़पन जीवन-निर्माण का साधक होकर जवानी को सार्थक करता है परन्तु विवेकशीलता की कुतुबनुमा को साथ लेकर आप डब्ल्यू. आर. विलियम्स के इस कथन को स्मरण रखिए कि राष्ट्र और व्यक्ति के लिए जवानी आशा, साहस एवं शक्ति का युग है,

 Credit R.P Chaturvedi and Education Is Growth.

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युवावस्था को वरदान बनाइए By Education Is Growth , युवावस्था को वरदान बनाइए By Education Is Growth , Reviewed by Richa Mishra on Friday, December 27, 2019 Rating: 5

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